हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हज़रत मासूमा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पवित्र स्थान पर आयोजित एक शोक सभा में संबोधित करते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सादिक मीरशफीई ने कुरआन की आयत قُل لِلمؤمنین یغضوا من أبصارهم و یحفظوا فروجهم»
की तिलावत के बाद कहा कि अल्लाह तआला ने मोमिनों को नज़रें नीची रखने और इज्जत की हिफाज़त का आदेश दिया है ताकि समाज पवित्रता और ईमान की फिज़ा में बना रहे।
उन्होंने दुख प्रकट करते हुए कहा कि हाल के वर्षों में बदहिजाबी और धार्मिक हुकूमतों से लापरवाही बढ़ी है, और जब पाप सार्वजनिक हो जाता है तो धार्मिक और नैतिक सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। इसके नतीजे में सूखेपन,और सामाजिक असुरक्षा जैसी आफ़तें आती हैं।
हौज़ा के शिक्षक ने ज़ोर देकर कहा कि हिजाब का बचाव केवल उलेमाओं की जिम्मेदारी नहीं बल्कि हर मुसलमान की जिम्मेदारी है। समाज के सभी तबकों को अपने धार्मिक फर्ज के अनुसार इस इस्लामी हुक्म के संरक्षण के लिए प्रकाश फैलाना चाहिए।
उन्होंने स्पष्ट किया कि हिजाब के वजूद पर सभी मरजस तक़लीद का इजमा है और किसी ने भी इस फर्ज़ का इंकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति खुदा और रसूल पर ईमान का दावा करता है लेकिन हिजाब के हुक्म को नहीं मानता, उसका व्यवहार शैतान की नाफ़रमानी जैसा है जिसने खुदा को माना लेकिन हुक्म नहीं माना।
हजतुल इस्लाम मीरशफीई ने आगे कहा कि "नज़र दिल का दरवाज़ा है, जैसा कि अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) ने फरमाया: القلب مصحف البصر, यानी इंसान जो देखता है वह दिल पर नक़्श हो जाता है। उन्होंने कहा कि नापाक नज़र इंसान को याद-ए-खुदा से भटका देती है, इसलिए पाक ज़िंदगी की पहली शर्त नज़र की हिफाज़त है।
उन्होंने हज़रत फातिमा ज़हरा स.ल. की सिरत को बेहतरीन नमूना बताया और कहा कि रसूल की बेटी ने यहां तक कि ख़ुतबे के वक्त भी पर्दे के पीछे से बात की। अगर महिलाएं सिरत-ए-फ़ातमी को अपनाएं तो हिजाब इज़्ज़त और करामत की निशानी बनेगा, न कि रुकावट।
अंत में उन्होंने कहा कि बेहिजाबी को बढ़ावा देना इज़राईली और उपनिवेशवाद की गहरी साजिश है, जिसका मकसद युवा पीढ़ी के ईमान को कमजोर करना और पारिवारिक व्यवस्था को नष्ट करना है। उन्होंने कहा कि "हम सभी का फर्ज है कि दुश्मन की इस साजिश के सामने जागरूकता और अज़मत से काम लें।
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